तस्करी जैसे अवैध कारोबार से देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित'

Ankalan 4/11/2018

नई दिल्ली:| जालसाजी और तस्करी से देश की अर्थव्यवस्था पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है तथा उद्योगों के विकास को प्रभावित करता है। केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के विधि मामलों के सचिव सुरेश चंद्रा ने बुधवार को फिक्की द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में यह बातें कही। फिक्की कास्केड (अर्थव्यवस्था को नष्ट कर रही जालसाजी और तस्करी जैसी गतिविधियों के खिलाफ कमेटी) ने गुरुवार को यहां अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस - मास्क्रेड 2018 का आयोजन किया, जिसकी थीम 'सतत कारोबार एवं रोजगार सृजन के लिए ब्रांड सुरक्षा सुनिश्चित करना' रखी गई थी।
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,  सम्मेलन के पांचवें संस्करण का उद्घाटन करते हुए चंद्रा ने कहा, "जालसाजी और तस्करी का तीन तरह से हानिकारक प्रभाव पड़ता है। सबसे पहले यह निर्माताओं को प्रभावित करता है, उनके उद्योग के विकास पर असर डालता है, उस सेक्टर के मुनाफे को प्रभावित करता है, इसलिए रोजगार के विकास पर असर पड़ता है। दूसरा, ग्राहकों को इसकी सामाजिक कीमत चुकानी पड़ती है। जालसाजी, तस्करी और पाइरेसी के सबसे बड़े शिकार ग्राहक होते हैं, जो मानक के नीचे के उत्पादों की कीमत चुकाते हैं और इससे उनके स्वास्थ्य व सुरक्षा पर खतरा पैदा होता है। आखिर में इन गतिविधियों का प्रभाव सरकार की राजस्व हानि के रूप में होता है। सरकार के राजस्व में होने वाली हानि का सीधा असर स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा एवं सार्वजनिक परिवहन जैसी जनकल्याण की योजनाओं पर होने वाले व्यय पर दिखता है। संसाधन में कमी का असर पुलिस व अन्य प्रवर्तन इन्फ्रास्ट्रक्च र पर भी पड़ता है, जिससे अवैध कारोबार और तेजी से बढ़ता है।"
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,  सम्मेलन का आयोजन यह सुनिश्चित करने के लक्ष्य के साथ किया गया कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के संबद्ध पक्ष सीमा के आर-पार होने वाले अवैध कारोबार के खिलाफ सरकार और निजी क्षेत्र के बीच संयुक्त कार्रवाई के अवसरों की पहचान के लिए नीति निमार्ताओं से बात कर सकें।
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,  फिक्की ने एक बयान में कहा कि अवैध वस्तुओं में कारोबार विभिन्न देशों व क्षेत्रों में फैला है और अरबों डॉलर के उद्योग का प्रतिनिधित्व करता है और लगातार बढ़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक, वैश्विक जीडीपी का 8 से 15 फीसदी अवैध कारोबार व आपराधिक गतिविधियों से प्रभावित है। हाल के अध्ययनों में यह अनुमान भी व्यक्त किया गया है कि 2022 तक वैश्विक स्तर पर अवैध कारोबार का आकार 2,300 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है और इसके व्यापक सामाजिक, निवेश व आपराधिक दबाव के कारण इसका प्रभाव 4,200 अरब डॉलर तक जा सकता है। इससे 54 लाख वैध रोजगार पर संकट मंडरा रहा है। इसकी उपस्थिति और परिचालन व्यापक और आकार में बड़ा होने के कारण उद्योग व सरकार को नुकसान पहुंचाते हुए यह न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है, बल्कि इससे ग्राहकों की सेहत व सुरक्षा पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
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,  बयान में कहा गया कि भारत में तस्करी के बड़े कारणों में टैक्स की ऊंची दरें, ब्रांड की लालसा, जागरूकता की कमी, जटिल प्रवर्तन, सस्ते विकल्प, मांग व आपूर्ति में अंतर आदि शामिल हैं और यह कई तरीकों जैसे मिस-डिक्लेरेशन (संबद्ध एजेंसियों को गलत जानकारी देना), अवमूल्यन (आयात या निर्यात के मूल्य को कम करके दिखाना), मिसयूज ऑफ एंड यूज (किसी अन्य उद्देश्य के नाम पर लाई हुई वस्तु का अवैध तरीके से गलत कार्य में उपयोग) और अन्य माध्यमों से होती है। पिछले कई दशक से भारतीय प्रशासन के समक्ष तस्करी चिंता का विषय रही है। राजस्व खुफिया निदेशालय के मुताबिक, भारत में तस्करी कर लाई हुई वस्तुओं में नार्कोटिक ड्रग, सोना और तम्बाकू की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है।
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,  फिक्की कास्केड की रिपोर्ट के मुताबिक, विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली जालसाजी और तस्करी में से तंबाकू उत्पादों से सरकारी खजाने को सर्वाधिक 9139 करोड़ रुपये का अनुमानित घाटा हुआ। इसके बाद मोबाइल फोन के अवैध कारोबार से 6705 करोड़ रुपये और अल्कोहलयुक्त पेय के अवैध कारोबार से 6309 करोड़ रुपये का घाटा हुआ।
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,  फिक्की कास्केड के चेयरमैन अनिल राजपूत ने कहा, "मास्क्रेड का 5वां संस्करण तस्करी व जालसाजी पर लगाम के लिए प्रभावी रोडमैप मुहैया कराने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। हर साल हम इस अदृश्य दुश्मन के खिलाफ अपनी लड़ाई में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है। अवैध कारोबार पर लगाम के लिए हमारे तत्काल व गंभीर ध्यान की जरूरत है क्योंकि इससे बेरोजगारी बढ़ती है, अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव पड़ता है और व्यापक शारीरिक, मानसिक व सामाजिक दबाव पड़ता है।"

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