असर क्यों नहीं करती हैं बातें ?

Ankalan 13/7/2021

आजकल हर घर में अभिभावक शिकायत करते मिल जाते हैं कि बच्चे दिन-रात मोबाइल पर लगे रहते हैं। बच्चे हमारी कोई बात नहीं सुनते। इसी तरह कई घरों में पति को पत्नी से शिकायत है तो कई घरों में पत्नी को अपने पति से शिकायत है कि वह हमारी बात सुनते ही नहीं। अपनी बात न सुने जाने की शिकायत एक बड़ी समस्या बन गई है। कई लोग इसी शिकायत के साथ दिन की शुरुआत करते हैं तो कई लोग बातचीत का क्रम इस शिकायत के साथ ही प्रारंभ करते हैं कि आपको तो हमारा ख्याल ही नहीं है। यदि सामने वाला फोन नहीं या फिर कम करे तो कुछ लोग शिकायत करते हैं कि आप हमें कभी फोन करते ही नहीं हैं।
,  इस प्रकार की सोच और बातों में नकारात्मकता झलकती है । ज्यादातर लोगों की दिलचस्पी नकारात्मक बातों में नहीं होती है। इसके अलावा यदि हम बात करने वाले के व्यक्तित्व से प्रभावित नहीं हैं, बात करने वाले की संवाद शैली यदि हमें पसंद नहीं है, बातचीत करने वाले के शारीरिक अंदाज और आंखों का भाव यदि हम पसंद नहीं करते हैं तो फिर कोई कितनी भी अच्छी बात क्यों न कर ले, उसे ग्रहण कर पाने में परेशानी होती है। वैसी बातें हम सुन भी लें तो फिर याद नहीं रख पाते हैं। यानी बातें सुनकर भी अनसुनी हो जाती हैं। ऐसी बातों पर अमल करना तो बहुत दूर की बात होती है।
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,  जो लोग अपने जीवन में मन, वचन और कर्म से एक प्रकार का व्यवहार करते हैं, उनकी बातें ज्यादा असरकारी होती है। आजकल हर घर की कहानी एक जैसी हो गई है। मां-बाप दिन-रात टेलीविजन या मोबाइल फोन पर व्यस्त रहते हैं और बच्चों से अपेक्षा करते हैं कि वह मोबाइल का इस्तेमाल न करें। जाहिर सी बात है कि ऐसी परिस्थिति में बच्चे सुनेंगे नहीं। जब हमारे कर्म और उपदेश में अंतर होता है, तब मुंह से निकले हुए शब्दों को हमारा कर्म ही काटता चला जाता है। बच्चों को यदि हम सिखाते हैं- सत्यमेव जयते और दिन भर खुद ही झूठ बोलते रहते हैं तो बच्चा झूठ बोलना ही सीखेगा। हम अपने साथी-संगियों को परोपकार करने की नसीहत देते रहें, लेकिन दैनिक गतिविधियों में स्वार्थ को सर्वोपरि रखें तो हमारे संगी-साथी हमसे किनारा करते हुए हमारा मजाक ही उड़ाएंगे।
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,  असरदायक बातें करने से पहले यह सुनिश्चित कर देना जरूरी है कि हम उन बातों में स्वयं विश्वास रखते हैं या नहीं। जो प्रेरणादायक बातें हम दूसरों के लिए रख रहे हैं, उन पर हम खुद अमल करते हैं या नहीं। विचार और कर्म में जितनी ज्यादा भिन्नता होती है, हमारी बातों का असर उतना ही कम होता है। फिर हम परेशान होते रहते हैं कि हमारी बातें कोई सुनता ही नहीं। मन से, वचन से और कर्म से जब हम एक हो जाते हैं, तो हमारी बातें हर पटल पर सुनी जाती है।
,  वर्ष 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए स्वामी विवेकानंद ने जब उपस्थित श्रोताओं को हमारे अमेरिकी बहनों एवं भाइयों के रूप में संबोधित किया तो पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था। यह कमाल मात्र दो शब्दों का नहीं था। संबोधन के इन दो शब्दों के माध्यम से स्वामी विवेकानंद ने दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सनातन धर्म का सार प्रस्तुत कर दिया था जो पूरे विश्व को अपना कुटुंब मानकर चलता है। इसी तरह 1942 में मुंबई के ऐतिहासिक अगस्त क्रांति मैदान से अंग्रेजों के खिलाफ बिगुलनाद करते हुए महात्मा गांधी ने करो या मरो का मंत्र भारतीयों को दिया तो सारा भारत गुलामी की जंजीरों को तोड़ डालने के लिए एक साथ उठ खड़ा हुआ। पूरा मंत्र मात्र पाँच अक्षरों का था, लेकिन यह मंत्र पूरे देश में जान फूंकने में कामयाब रहा। अंग्रेजों के लिए यह मंत्र मारक साबित हुआ और भारत देश के लिए स्वतंत्रता का नया सूरज उगाने वाला। पाँच अक्षरों के इस महामंत्र में गांधी जी और सभी स्वतंत्रता सेनानियों का संघर्ष और समर्पण समाहित था। ब्रिटिश दास्तां के चंगुल से निकलने की चाहत भी बलवती हो चली थी। इसीलिए करो या मरो का यह मंत्र असरदार साबित हुआ। पाँच अक्षरों के इस मंत्र के प्रभाव के कारण अंग्रेजों को पाँच सालों के अंदर ही अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर भारत से वापस जाना पड़ा।
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,  महात्मा बुद्ध के जीवन काल में अंगुलिमाल डाकू का बड़ा आतंक था। जिस जंगल में अंगुलिमाल डाकू रहता था, उस जंगल से कोई भी गुजारना नहीं चाहता था। वह डाकू हर राहगीर को मारकर उसकी अंगुली काट लेता और फिर उसकी माला पहनता था । एक दिन महात्मा बुद्ध उस रास्ते से गुजरे। ग्रामीणों ने उन्हें जंगल के रास्ते जाने से मना किया। बुद्ध माने नहीं। जंगल के रास्ते जब वह गुजर रहे थे तो डाकू अंगुलिमाल की डरावनी आवाज उन्हें सुनाई दी- रुक जाओ। महात्मा बुद्ध रुक गए। सहज भाव से पूछा- मैं तो रुक गया । तुम कब रुकोगे?
,  अंगुलिमाल ने देखा कि जो संत उससे बातें कर रहे हैं, उनके चेहरे पर दिव्य शांति है, उनके चेहरे से तेज निकल रहा है। महात्मा बुद्ध के व्यक्तित्व से सम्मोहित डाकू अंगुलिमाल पर उनकी बातों ने जादू-सा असर किया। वह नतमस्तक हुआ और फिर सदा के लिए हिंसा के रास्ते को त्याग कर शांति के पथ पर आगे बढ़ा।
,  जब हम अंदर से शांत होते हैं, जब हम वैचारिक रूप से मजबूत होते हैं और कुछ कहने से पहले उस पर स्वयं अमल करते हैं; तब हमारी बातें सुनी जाती हैं, तब हमारी बातों का असर देर तक रहता है।
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,  * लेखक, कवि और मोटिवेशनल गुरु दिलीप कुमार भारतीय रेल यातायात सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं।

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