चुनौतियों के बीच भारत - इजरायल सम्बन्ध

Ankalan 17/10/2023

करीब सात दशक से चुनौतियों से जूझ रहे और आतंकवाद से प्रभावित इजरायल पर हाल के हमास द्वारा आतंकी हमले का दुष्प्रभाव अत्यंत व्यापक है. ईरान समर्थित फलस्तीनी आतंकी संगठन हमास के इस हमले की वैश्विक स्तर पर निंदा हो रही है. भारत सहित अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली सहित कई वैश्विक शक्तियां इजरायल को अपना समर्थन दे रही है. इजरायल से गाजा पट्टी तक इस्लामिक देश बनाने की कोशिश में लगा हमास ईरान, सीरिया, व लेबनान में इस्लामी समूह हिजबुल्लाह गुट का हिस्सा है. हमास की इस आतंकी हमले को जहां कई विकसित राष्ट्र निंदा कर रहे हैं वहीं ईरान, सीरिया और यमन इसे समर्थन देता है. गौरतलब है कि हमास को अमेरिका समेत यूरोपीय संघ, कनाडा, मिस्त्र, जापान पहले से ही आतंकी संगठन घोषित कर चुके है.
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,  बहरहाल एक लम्बे संघर्ष की इस वर्तमान पुनरावृति को भारत - अमेरिका सम्बन्धों के व्यापक हितों और भारत-इज़रायल संबंध को कई नजरिये से देखा जा सकता है. इस वर्तमान घटनाक्रम का सीधा या परोक्ष रूप से भारत पर व्यापक असर पड़ना तय है. हालांकि इस क्षेत्र के इन संघर्षों से भारत अक्सर प्रभावित होता रहा है. लेकिन वर्तमान की भू रणनीतिक महत्व, दोनों देशों के आपसी सम्बन्ध और अरब देशों के साथ भारत के सम्बन्ध के कई समीकरणों को इस घटनाक्रम के आलोक में देखना महत्वपूर्ण है.
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,  भारत का इजरायल के प्रति एक ऐतिहासिक सम्बन्ध और सबक भी जुडा हुआ है. करीब सात दशक से इजरायल एक राष्ट्र राज्य बने रहने की चुनौती से जूझ रहा है जिसके विरोध में 50 से अधिक अरब देश रहे हैं. लेकिन अपनी हिम्मत और सैन्य ताकत की बदौलत इजरायल सैन्य युद्ध में कभी हार नहीं मानी. लेकिन बार- बार के इन हमलों और चुनौतियों से विश्व के अन्य देश प्रभावित होते रहे हैं. वर्तमान में भी यह संकट वैश्विक संकट बनता जा रहा है जो प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से विश्व की कई महाशक्तियों को प्रभावित कर चुका है. इजरायल पर हमास के हमले और यरूशलम के जवाबी कार्यवाई पश्चिम एशिया के इस बड़े मुद्दे में अमेरिका भी फंसता जा रहा है. अमेरिका के भी लिए अत्यंत दुविधा की स्थिति बन रही है एक तरफ वह इजरायल के लिए समर्थन दे रहा है तो दूसरी तरफ अशांत पश्चिम एशिया में शान्ति के प्रयास भी कर रहा है. इस्लामिक देश बनाने की हमास की तुच्छ सोच से आज विश्व व्यवस्था में असंतुलन आ रहा है जिसका दुष्प्रभाव भारत पर समग्र रूप से पडेगा.
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,  ऐसी परिस्थिति में भारत का समर्थन इजरायल के लिए कई मायने में महत्वपूर्ण है. एक ऐसे समय में जब भारत की वैश्विक स्वीकार्यता बढ़ी है, भारत के वैश्विक नेतृत्व क्षमता को स्वीकारा जाने लगा है, ऐसे में भारत की जिम्मेदारी इस क्षेत्र में और भी बढ़ गई है. यह जिम्मेदारी इजरायल के साथ अपने संबंधों को अक्षुण और परिष्कृत करने के साथ ही धार्मिक कट्टर समूहों से निपटने और आतंकवाद की समस्या का समाधान करने से अधिक जुडा हुआ है. भारत और इजरायल दोनों आतंकवाद से एक लम्बी लड़ाई लडे हैं. दोनों देशों के ऐतिहासिक सम्बन्ध और बदलती विश्व व्यवस्था में अक्सर इन चुनौतियों का साझा प्रभाव देखा गया है.
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,  जब भी भरत और इजरायल की बात होती है दोनों देश के राजनयिक संबंधों की दिलचस्प बातें सामने आती है. दोनों देशों के राजनयिक सम्बन्ध तकनीकी रूप से 1950 में परीलक्षित हुए जब भारत ने इज़रायल को आधिकारिक रूप से मान्यता दी थी. लेकिन दोनों देशों के बीच पूर्ण राजनयिक एक लम्बे अंतराल के बाद ही कायम हो सका. यह राजनयिक संबंध 29 जनवरी, 1992 को स्थापित हुए. दिसंबर 2020 तक भारत संयुक्त राष्ट्र के 164 सदस्य देशों में से एक था, जिसके इज़रायल के साथ राजनयिक संबंध थे. इजरायल के प्रति भारत का सदैव सकारात्मक भाव रहा है. यह दोनों देशों के आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक सम्बन्धों में स्पष्ट दिखा है.
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,  आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध की यदि बात करें जो कि किसी भी राष्ट्र राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण घटक होता है तो, वर्ष 1992 में दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर अप्रैल 2020 से फरवरी 2021 की अवधि में 4.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो गया था जिसमें रक्षा क्षेत्र शामिल नहीं था, यदि रक्षा क्षेत्र को भी जोड़ दिया जाय तो यह और भी अधिक हो जाएगा. हालांकि दोनों देशों के आर्थिक संबंधों में व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में रहा है. गौर करने की बात यह है कि भारत एशिया में इज़रायल का तीसरा और विश्व स्तर पर सातवाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. इतना ही नहीं इजरायल की कई बड़ी कंपनियों ने भारत में ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा, दूरसंचार, रियल एस्टेट, वाटर टेक्नोलॉजी में निवेश की है तथा इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है, ख़ास कर अनुसंधान एवं विकास और उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करने के मामले में. सबसे महत्वपूर्ण है कि इज़रायल के साथ भारत के रक्षा सम्बन्ध काफी मजबूत है. रक्षा क्षेत्र में इजरायल एक मजबूत और सशक्त देश है. साथ ही इजरायल हमारे लिए सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्त्ता है. भारत के सशस्त्र बलों में बड़े पैमाने पर इज़रायली हथियार शामिल है. हालांकि भारत ने जब से रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढाए है इसमें कमी की उम्मीद की जा रही है लेकिन रक्षा तकनीक के स्तर पर अभी भी इजरायल भारत का बड़ा साझेदार बना हुआ है.
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,  केवल रक्षा क्षेत्र ही नहीं इजरायल कई मायने में भारत के लिए महत्वपूर्ण है. मई 2021 में ही भारत और इजरायल के मध्य कृषि विकास में सहयोग के लिये तीन वर्ष के कार्य समझौते पर हस्ताक्षर किये गए है. हाल ही में भारत और इज़रायल ने औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास और तकनीकी नवाचार कोष के दायरे को व्यापक बनाने पर भी सहमति बनाई है. इज़रायल, भारत के नेतृत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में भी शामिल हो रहा है, जो दोनों देशों के ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने और स्वच्छ ऊर्जा में भागीदारी के लिहाज से महत्वपूर्ण है. इन संबंधों के दायरे में दोनों देशों के संबंधों की यदि समीक्षा की जाय तो दोनों देशों के संबंधों के मुख्य आयाम पारस्परिक रणनीतिक हित और सुरक्षा खतरों की साझी परिस्थितियाँ हैं. यही कारण है कि दोनों देशों के बीच संबंधों में मज़बूती आई है.
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,  सामाजिक- सास्कृतिक रूप से भी देखा जाय तो दोनों देशों के बीच भावात्मक सम्बन्ध है. पिछले वर्ष ही दोनों देशों ने कूटनीतिक संबंधों की 30वीं सालगिरह मनाई है. दोनों देशों के सम्बन्ध देखने में भले तीन दशक पुराने लगे, किन्तु इजरायल के यहूदी धर्म का भारत से सदियों पुराना नाता रहा है. दोनों देशो के बीच मजबूत संबंधों का एक प्रमुख आयाम भारत में रह रहे यहूदी समुदाय है, भारत के निर्माण में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
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,  दोनों देशों की साझी चुनौतियां भी हैं, ख़ास कर भारत और इज़रायल को अपने पड़ोसियों से अधिक चुनौती है. दोनों देशों के बीच मध्य-पूर्वी क्षेत्र में अपनी परस्पर हितो की सुरक्षा के साथ इस क्षेत्र के देशों की समस्याओं से निपटना भी है. वर्तमान घटनाक्रम ने भारत की चुनौतियों को और बढाया है. हालांकि इन चुनौतियों के बीच कई सकारात्मक पहलू है जिनका अधिकतम उपयोग कर हम चुनौतियों से निपटने के साथ ही इजरायल के साथ अपने संबंधों को मजबूत रखते हुए अरब देशों को भी साध सकते हैं. बहरीन व संयुक्त अरब अमीरात के साथ इजरायल के रिश्तों में अब्राहम एग्रीमेंट्स के तहत हुई नई शुरुआत ने भारत व इजराइल के लिए त्रिपक्षीय तथा बहुपक्षीय सहयोग के रास्ते को आसान बनाया है. भारतीय विदेश मंत्री की 2021 में इजरायल यात्रा के दौरान इजरायल, अमेरिका, भारत तथा यूएई के बीच पश्चिम एशिया में बदलते क्षेत्रीय समीकरणों का परिचायक था, जिसे आगे बढाया जा रहा है. भारत हमेशा से पश्चिम एशिया क्षेत्र के देशों के साथ अपने राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संबंधों को उच्‍च प्राथमिकता देता है. यही कारण है कि भारत कोई आक्रामक नीति को प्रश्रय न देना चाहता है और न उसका समर्थन करता है. जहां तक फ़लीस्तीन का सम्बन्ध है भरत उस मामले में भी हमेशा शांतिपूर्ण हल का पक्षधर रहा है. बहरहाल इस घटनाक्रम के बाद की चुनौतियों से निपटने के लिए इजरायल तो तैयार है ही, भारत भी अपनी वैश्विक नेतृत्व क्षमता के साथ हर संभव तैयार है.

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