चीन पर भरोसे का कोई आधार नहीं : सुधांशु द्विवेदी

Ankalan 6/3/2017

 पड़ोसी देश चीन के साथ भारत का सीमा विवाद वर्षों से चल रहा है तथा भारत के विभिन्न भू-भागों को चीन द्वारा हथियाने की कुचेष्टा भरी नीयत से पूरा विश्व वाकिफ है। चीन के साथ भारत का सीमा विवाद इतना गंभीर है कि चीन आये दिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के खिलाफ किसी न किसी षडय़ंत्र में शामिल होता रहता है। साथ ही भारत को वैश्विक स्तर पर मात देने के लिये चीन द्वारा पाकिस्तान सहित दुनिया के अन्य भारत विरोधी देशों को मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहता है। अब संभवत: भारत को फिर किसी भी तरह से चीन द्वारा अपने जाल में फंसाने की तैयारी चल रही है। भारत और चीन के बीच लंबे अरसे से चले आ रहे सीमा विवाद को सुलझाने के लिए चीन द्वारा जमीन की अदला-बदली का जो फार्मूला अपनाने की बात कही जा रही है, वह अपने आप में एक तरह का धोखा और षडय़ंत्र ही प्रतीत होता है। भारत के साथ सीमा विवाद पर चीन के पूर्व वार्ताकार और वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता दाई बिंगुओ द्वारा यह जो फार्मूला सुझाने की बात कही जा रही है, उसकी कोई विश्वसनीयता समझ में नहीं आती। चीन द्वारा विभिन्न भारतीय भूभागों पर गिद्धदृष्टि पहले से ही इनायत होती आई तथा तथा अब अगर भारत को अक्साई चिन देकर चीन द्वारा तवांग पर कब्जे की फितरत पाली जा रही है तो यह भारत के लिये कूटनीतिक दृष्टि से तो नुकसानदायक साबित होगा ही साथ ही इसका भौगोलिक दृष्टि से भी भारत की प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। क्यों कि तवांग भारत-चीन सीमा के पूर्वी सेक्टर का सामरिक और राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है। ऐसे में यदि चीन का तवांग पर अधिकार हो जायेगा तो तिब्बती बौद्ध केंद्रों पर इस शातिर पड़ोसी देश की पकड़ और मजबूत हो जाएगी। चीन की मानसिकता भारत के प्रति हमेशा ही द्वेषपूर्ण रहती है, इसका उदाहरण तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा भी हैं। निकट भविष्य में दलाई लामा अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर आने वाले हैं। ऐसे में चीन द्वारा दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर आपत्ति जताते हुए कहा गया है कि दलाई लामा की इस यात्रा से भारत के साथ उसके द्विपक्षीय संबंध और विवादित सीमावर्ती इलाके में शांति को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। चीन को यह ज्ञात होना चाहिये कि दलाई लामा एक धार्मिक यात्रा के तहत अरुणाचल प्रदेश आ रहे हैं तथा भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, ऐसे में दलाई लामा की उक्त यात्र का चीन द्वारा विरोध किये जाने का कोई औचित्य व आधार नहीं है। वैसे भी दलाई लामा भारत देश में चाहे अरुणाचल प्रदेश की यात्रा करें या वह किसी दूसरे भारतीय राज्य के प्रवास पर आयें, चीन को इस पर किसी प्रकार की दखलंदाजी करने या आपत्ति जताने का कोई अधिकार नहीं है। तिब्बती धर्म गुरु के रूप में दलाई लामा की भारत में स्वीकार्यता काफी है तथा वह भविष्य में भी अरुणाचल प्रदेश व दूसरे भारतीय राज्यों की यात्रा ससम्मान व निर्बाध ढंग से करते रहेंगे। चीन अगर एक तरफ तवांग के बदले में भारत को अक्साई चिन देने का सपना दिखा रहा है वहीं उसके द्वारा दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा को लेकर औचित्यहीन तरीके से आपत्ति जताने का सिलसिला जारी रख कर भारत पर दबाव बनाना चाहता है तो इससे यह साबित होता है कि इस पड़ोसी मुल्क की भारत के प्रति शातिराना सोच में किसी तरह की सकारात्मकता नहीं आई है। वह अपने साजिशाना लक्ष्य की ओर ही आगे बढऩा चाहता है। चीन द्वारा समय-समय पर भारतीय नेताओं और विदेशी प्रतिनिधियों की अरुणाचल यात्रा का विरोध किया जाता रहा है। चीन ने दिसंबर 2016 में तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु 17 वें करमापा उग्येन त्रिनले दोरजी की अरुणाचल यात्रा का भी विरोध किया था। गत वर्ष अक्टूबर में अमेरिकी राजदूत रिचर्ड वर्मा के अरुणाचल प्रदेश दौर के समय भी चीन काफी बिफर गया था। चीन द्वारा अमेरिका को भी चेतावनी देते हुए कहा गया था कि इससे भारत-चीन सीमा पर काफी मशक्कत के बाद बनी शांति को नुकसान पहुंच सकता है। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अरुणाचल यात्रा पर भी इस शातिर पड़ोसी देश द्वारा असंतोष जाहिर किया गया था। अरुणाचल प्रदेश पर चीन की दावेदारी को भारत पहले ही प्रभावी ढंग से नकार चुका है तथा देश का महत्वपूर्ण राज्य अरुणाचल प्रदेश संप्रभुता संपन्न राष्ट्र भारत के अभिन्न अंग के रूप में प्रगति के पथ पर निरंतर अग्रसर हो रहा है। साथ ही देश के इस राज्य पर चीन की गिद्धदृष्टि को हरगिज बर्दाश्त नहीं की जायेगी। बहरहाल चीन को तवांग देकर अक्साई चिन हासिल करने का कदम भारत कभी नहीं उठाएगा तथा चीन को चाहिए कि वह भारत के साथ सीमा विवाद के नाम पर विश्व बिरादरी को गुमराह करना बंद करे।

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