साइकिल पर घूमकर करते थे बीजेपी का प्रचार डॉक्टर तोमर

Ankalan 17/4/2024

नई दिल्ली:लोकसभा चुनाव की सरगर्मी तेज है। सुबह के दस बजे हैं। डॉक्टर रमेश चंद्र तोमर अपने आवास पर मिलने आये लोगों को बता रहे हैं कि क्यों नरेंद्र मोदी का तीसरी बार पीएम बनना ज़रूरी है। समर्थकों से बात करते करते वे अपनी पुरानी यादों में खो जाते हैं। वे समर्थकों को बताते हैं कि किस तरह से परिश्रम करके ग़ाज़ियाबाद में बीजेपी की जड़ों को मज़बूत करने का काम किया गया।
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,  ग़ाज़ियाबाद को आज भले ही बीजेपी का गढ़ माना जाता हो लेकिन एक वक्त था जब यहाँ बीजेपी का झंडा थामने वाले लोग नहीं थे। ग़ाज़ियाबाद से चार बार सांसद चुने गये डॉक्टर रमेश चंद्र तोमर ने जब 80 -90 के दशक में यहाँ राजनीति शुरू की तो गिने चुने लोग ही यहाँ बीजेपी के समर्थक थे। संघ की शाखाएँ लगाना मुश्किल होता था। पैदल और साइकिल पर गाँव गाँव घूमकर डॉक्टर तोमर आरएसएस और बीजेपी की नीतियों के बारे में बताए थे।
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,  एक बार कल्याण सिंह यहाँ आये तो उन्हें स्टेशन पर लेने के लिए अपने समर्थकों के साथ डॉक्टर रमेश चंद्र तोमर गये। लेकिन उन्होंने जो गाड़ी कल्याण सिंह को रिसीव करने के लिए बुलाई थी वह नहीं पहुँची। उन्होंने कान में कल्याण सिंह को बताया कि मैं तो रिक्शे से आ गया लेकिन जो गाड़ी बुलाई थी वह नहीं आई। कल्याण सिंह ने कहा अरे इंतज़ार क्यों करना हम भी रिक्शे से चलेंगे और रिक्शे पर बैठकर दोनों नेता तय कार्यक्रम के लिए चले गये।
,  डॉक्टर तोमर बताते हैं कि कई जगहों पर संघ की शाखाएँ नहीं लगने दी जाती थीं। उन्होंने युवाओं को लामबंद किया और जहां विरोध होता था वहाँ दल बल के साथ पहुँचकर शाखा लगवाते थे।
,  अब बीजेपी में संसाधनों की कमी नहीं है। लेकिन ज़मीन से जुड़े नेता के रूप में जो पहचान डॉक्टर तोमर ने बनाई उसे लोग आज भी याद करते हैं।
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,  फ़िलहाल इस बार ग़ाज़ियाबाद में प्रत्याशी बदला गया है और अतुल गर्ग को स्थानीय स्तर पर काफ़ी आंतरिक विरोध झेलना पड़ रहा है। कई जगहों पर क्षत्रिय सम्मेलन हो रहे हैं। ऐसे में ग़ाज़ियाबाद में कई नेता डॉक्टर तोमर का दौर याद कर रहे हैं जब वे ख़ुद फ्रंट पर आकर अपने असंतुष्टों को आत्मीयता से डाँट डपटकर शांत करा देते थे। एक नेता ने कहा आजकल सबको लगता है जीत मोदी जी के नाम पर होनी है इसलिए जनता से जुड़ने का जो दायित्व उन्हें निभाना चाहिए इससे भी वे दूर हो जाते हैं।
,  फ़िलहाल ग़ाज़ियाबाद की लड़ाई इस बात काफ़ी दिलचस्प है। जैसे - जैसे मतदान की तारीख़ नज़दीक आ रही है राजनीतिक दलों का प्रचार भी गति पकड़ रहा है। अब साइकिल नहीं गाड़ियों का कारवां है। ऐसे में हाथ हिलाते , मिलाते और झटपट आगे के लिए निकल जाते नेता जनता के दिल से कितना जुड़ते हैं कहना मुश्किल है।

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